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क्या मुहम्मद मुसलमानों को उद्धार दिल सकते हैं जबकि खुद उनका ही उद्धार निश्चित नहीं है ?

क्या मुहम्मद मुसलमानों को उद्धार दिल सकते हैं जबकि खुद उनका ही उद्धार निश्चित नहीं है

एक मुस्लिम परंपरा है कि जब भी मुहम्मद का नाम कहीं पर आये चाहे वह बोलने में हो या लिखने में मुस्लमान अपनी उँगलियों से अपने होंठों और आँखों को चूम कर कहते हैं “उसे शांति मिले” और उनका ऐसा करना मुझे हमेशा दुविधा में डालता है। क्या यह दर्शाता है कि मोहम्मद ने अभी तक उद्धार प्राप्त नहीं किया है? और ऐसा प्रतीत होता है कि मुसलमान अल्लाह से मोहम्मद के लिए दुआ करते हैं कि उसे अनंत काल तक के लिए माफ़ किया जाये। क्या यह परंपरा नहीं दर्शाती कि वाकई मुहम्मद ने अपने जीवनकाल में अनगिनत पाप किये होंगे जो पैग़म्बर होने के बावजूद उसे उद्धार प्राप्त नहीं हुआ है? या कहीं ऐसा तो नहीं कि मुहम्मद पैग़म्बर था ही नहीं? यदि वह वास्तविकता में परमेश्वर का भेज पैग़म्बर था तो उसे पाप रहित होना चाहिए था और वह कभी ऐसे गंभीर अपराध ना करता कि पूरी दुनिया की मुसलमान जाति को उसके पापों की क्षमा के लिए प्रार्थना करनी पड़ती। यहाँ बहुत अहम बात यह है कि अगर मुहम्मद ने स्वयं ही मुक्ति प्राप्त नहीं की तो वह किस तरह से उन अरबों मुसलमानों को मुक्ति दिलवाएगा जो अन्धों की तरह उसका अनुसरण करते हैं?

जहां तक मेरा ज्ञान है मैंने किसी भी धर्म को स्थापित करने वाले को अपने अनुयायियों से यह अनुरोध करते नहीं देखा कि वह परमेश्वर से उसकी आत्मा की शांति और उद्धार की प्रार्थना करें। तब क्यों मुहम्मद अपने उद्धार के लिए चिंतित है? इस बात पर मुसलमान ध्यान दें कि जब स्वयं मुहम्मद का उद्धार उसके अनुयायियों पर निर्भर है तो क्या ऐसे इंसान का अनुसरण करना और उसके बताये रास्ते पर चलना मूर्खता नही है? कितनी आसानी से दुनिया भर के अरबों मुसलमानों को मूर्ख बनाया है मुहम्मद ने! सचमुच क़ुरान में भी मुहम्मद की आत्मा को बचाने का उल्लेख कहीं नहीं किया गया है।

क़ुरान 46:9 – “मुहम्मद कहते हैं कि ; मैं दूतों के बीच कुछ नया नहीं हूं और नहीं जानता कि मेरे साथ और तुम्हारे साथ क्या होगा? मैं वही बताता हूं जो मुझे प्रदर्शित किया गया है, मैं केवल तुम्हें सचेत करने वाला हूं.”।

पूर्वकथित क़ुरान की आयत में मुसलमानों का अल्लाह कहता है कि यह निश्चित नहीं कि मुहम्मद की आत्मा को उद्धार मिलेगा, और मुहम्मद स्वयं इसकी पुष्टि करते हैं “साही अल बुखारी की हदीस नंबर 5-58-266” में जिसका अनुवाद है कि मुहम्मद कहते हैं कि “मैं अल्लाह का पैग़म्बर हूं पर यह नहीं जानता हूँ कि अल्लाह मेरे साथ क्या करेगा ?”

इसलिए यह समझ लेना चाहिए कि क्यों मुहम्मद मुस्लिमों से निवेदन करता है अपनी आत्मा की शांति और उद्धार की प्रार्थना के लिए, और यह प्रक्रिया मुस्लिम सदियों से करते आ रहे हैं और हमेशा करते रहेंगे। इससे ज्यादा बेवकूफी क्या होगी कि दुनिया के अरबों मुस्लिम मानते हैं कि मुहम्मद के बताये रास्ते पर और उसके पीछे चलकर वह अपना उद्धार प्राप्त कर सकते हैं जबकि मुहम्मद स्वयं ही अपने उद्धार को अल्लाह से निश्चित नहीं करा पाया है और दुनिया के मुसलमानों से अपने उद्धार को पाने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करने को कहता है। सो यदि मुसलमानों को सच में परमेश्वर के सामने उपस्थित होना है जैसा कि वह मानते हैं तो क्या उनके लिए उद्धार की प्रतीक्षा करना मात्र कल्पना है?

सारांश यह है की एक मनुष्य जिसका स्वयं का उद्धार निश्चित नहीं है वह आपको स्वर्ग में नहीं ले जा सकता है, न ही आपको 72 कुंवारियों दिल सकता है, ना ही उससे यह उम्मीद की जा सकती कि परमेश्वर के सामने वह आपकी सिफ़ारिश करे। ठीक इसके विपरीत यीशु मसीह ने अपने अनुयायियों से वादा किया कि उसके पीछे चलने वालों का उद्धार निश्चित है. बाइबल, जो परमेशर का सत्य वचन है हमें इस बात का भरोसा दिलाती है कि जो कोई परमेश्वर के पुत्र के बताये रास्ते पर चलेगा वह हमेशा का जीवन पाएगा।

मेरा मुसलमानों से यह निवेदन है कि जिहाद के नाम पर जो झूठे ख़्वाब आपको दिखाए गए हैं उनकी बिना पर निर्दोष लोगों को मारना बंद करें, 72 कुंवारियों के बारे में दिन में सपने देखना बंद करें जो मुहम्मद आप सब को दिखा कर गया है, और उस व्यक्ति के पीछे चलना छोड़ दीजिये जो मर चुका है और जिसका स्वयं का उद्धार निश्चित नहीं है। यीशु मसीह आपका इंतजार कर रहे हैं अपनी बाहें फैलाए हुए। उसके प्यार को समझिए और अपने जीवन को एक नया मौका दीजिये। आपके उद्धार का स्रोत ठीक आपके सामने है, अपने इस अवसर को जाने ना दीजिये। ऐसा ना हो कि कयामत के दिन परमेश्वर के सामने आप पछताते हुए मुहम्मद के साथ पापियों की उस कतार में खड़े हों जो नरक की ओर जाती हो।

जोसेफ़ मसीह
मीरपुर – पाकिस्तान